देहरादून। मानवाधिकार एवं सामाजिक न्याय संगठन द्वारा 108 परम पूज्य विद्यासागर जी महाराज जो तप, त्याग, ध्यान धारणा के साक्षात स्वरूप थे के चंद्रागिरि तीर्थ डोंगरगढ़ में समाधि में लीन होने पर भावभीनी विनयांजलि अर्पित की। इस मौके पर अध्यक्ष सचिन जैन ने विनयांजलि अर्पित करते हुए कहा कि परम पूज्य विद्यासागर जी महाराज का जन्म 10 अक्टूबर 1946 को विद्याधर के रूप में कर्नाटक के बेलगांव जिले के सदलगा में शरद पूर्णिमा के दिन हुआ। परमपूज्य विद्यासागर जी महाराज जो तप, त्याग, ध्यान, धारणा समाधि, समाधान के साक्षात् स्वरूप थे आचार्य विद्यासागर जी संस्कृत, प्राकृत सहित विभिन्न आधुनिक भाषाओं हिन्दी, मराठी और कन्नड़ में विशेषज्ञ स्तर का ज्ञान रखते हैं। उन्होंने हिन्दी और संस्कृत के विशाल मात्रा में रचनाएँ की हैं। सौ से अधिक शोधार्थियों ने उनके कार्य का मास्टर्स और डॉक्ट्रेट के लिए अध्ययन किया है।उनके कार्य में निरंजना शतक, भावना शतक, परीषह जाया शतक, सुनीति शतक और शरमाना शतक शामिल हैं।आचार्य विद्यासागर जी के शिष्य मुनि क्षमासागर जी ने उन पर आत्मान्वेषी नामक जीवनी लिखी है। इस पुस्तक का अंग्रेजी अनुवाद भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित हो चुका है। मुनि प्रणम्यसागर जी ने उनके जीवन पर अनासक्त महायोगी नामक काव्य की रचना की है।
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज त्याग की प्रतिमूर्ति थे उनका कोई बैंक खाता नही कोई ट्रस्ट नही, कोई जेब नही , कोई मोह माया नही, अरबो रुपये जिनके ऊपर निछावर होते है उन गुरुदेव के कभी धन को स्पर्श नही किया। उनका आजीवन चीनी, नमक, हरी सब्जी , फल, दही, सूखे मेवा तेल, सभी प्रकार के भौतिक साधनो, अंग्रेजी औषधि का त्याग किया। उन्होंने हजारो गायो की रक्षा के लिए गौशाला का निर्माण कराया ।
इस मौके पर प्रदेश अध्यक्ष मधु जैन ने अपनी अंजलि अर्पित करते हुए कहा कि महान संत परमपूज्य आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज जैसे महापुरुष का ब्रह्मलीन होना, देश और समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। उन्होंने अपनी अंतिम साँस तक सिर्फ मानवता के कल्याण को प्राथमिकता दी। मैं अपने आप को सौभाग्यशाली मानती हूँ कि ऐसे युगमनीषी का मुझे सान्निध्य, स्नेह और आशीर्वाद मिलता रहा।
इस मौके पर मानवाधिकार के संरक्षक जस्टिस राजेश टंडन ने विनयांजलि अर्पित करते हुए कहा कि मानवता के सच्चे उपासक आचार्य विद्यासागर जी महाराज का जाना मेरे लिए एक व्यक्तिगत क्षति है। वे सृष्टि के हित और हर व्यक्ति के कल्याण के अपने संकल्प के प्रति निःस्वार्थ भाव से संकल्पित रहे। विद्यासागर जी महाराज ने एक आचार्य, योगी, चिंतक, दार्शनिक और समाजसेवी, इन सभी भूमिकाओं में समाज का मार्गदर्शन किया। उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य व गरीबों के कल्याण के कार्यों से यह दिखाया कि कैसे मानवता की सेवा और सांस्कृतिक जागरण के कार्य एक साथ किये जा सकते हैं। वह हमेशा अभी स्मरणीय रहेंगे और इतिहास के पन्नों में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित रहेगा